शक्तिफार्म। विजयदशमी पर बंगाली समुदाय की महिलाएं, मां दुर्गा को विदाई देती हैं। इस दौरान महिलाएं पारंपरिक परिधानों से सुसज्जित होकर एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं जिसे, “सिंदूर खेला” कहा जाता है। मान्यता है कि महिलाएं अपनी सुहाग एवं बच्चों की सलामती के लिए, दुर्गा प्रतिमा विसर्जन से पूर्व “सिंदूर खेला” खेलती है।
मंगलवार को दुर्गा पूजा महोत्सव के दशमी पूजन के बाद, टैगोर नगर में बंगाली समुदाय की सुहागिन महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर मां दुर्गा को विदाई दी। बंगाली समुदाय में “सिंदूर खेला” को सुहागिन महिलाओं का त्योहार माना जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहनकर, माथे में सिंदूर भरकर, दुर्गा उत्सव स्थल पहुंचकर मां दुर्गा को उलु ध्वनि के साथ विदा करती हैं। “सिंदूर खेला” में, विधवा, तलाकशुदा, किन्नर एवं नगरवधुओं को शामिल नहीं किया जाता है। हालांकि पिछले कुछ सालों में सामाजिक बदलाव की ओर कदम उठाते हुए, अब सिंदूर खेला में सभी महिलाओं की भागीदारी देखी जाती है। मान्यता है की मां दुर्गा की मांग भरकर उन्हें मायके से ससुराल विदा किया जाता है। कहते हैं की मां दुर्गा पूरे साल में एक बार, अपने मायके आती हैं और, दस दिन मायके में रुकने के बाद जब ससुराल जाती है, तो उन्हें सिंदूर लगाकर विदा किया जाता है। “सिंदूर खेला” को बंगाली समुदाय की महिलाएं उत्सव के रूप में मनाती हैं। सिंदूर खेला के दौरान सीमा मंडल, शेफाली मंडल, शिखा विश्वास, सुशीला सरकार, सरस्वती विश्वास, माया हालदार, जयंती हालदार, पिंकी मंडल, अनिमा शाह, किशोर राय, विश्वजीत हालदार, भरत मंडल, सुनील विश्वास, अरविंद मंडल, नारायण दास, दिलीप मिस्त्री, सुमित सरकार आदि मौजूद थे।