रुद्रपुर। नगर की प्राचीनतम बस अड्डे वाली रामलीला में द्वितीय दिवस मुख्य अतिथि जेबीजेएम इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड के एमडी एवं नगर के प्रमुऽ रियल एस्टेट व्यवसायी, समाजसेवी जगदीश सिंह बिष्ट (पूर्व अध्यक्ष रोटरी क्लब), उनकी धर्मपत्नी निशा बिष्ट, उनकी माता शांति बिष्ट, बेटी नव्या एवं सुपुत्र प्रत्युष, विशिष्ट अतिथि उद्योगपति अशोक अग्रवाल, केएलए राइस मिल, राकेश बंसल रॉकी एवं उद्योगपति दिनेश कपूर ने प्रभु श्री रामचंद्र के चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया ।
अपने संबोधन में मुख्य अतिथि जगदीश बिष्ट ने कहा कलयुग में श्री राम नाम की महिमा अपार है। इसके जाप मात्र से ही मनुष्य अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। जो मनुष्य भौतिक सुऽ सुविधाओं में लीन होकर ईश्वर को भूल जाता है, उसे अंत में पछताना पड़ता है। यदि हम पर प्रभु की कृपा होती है तो हमें अपने परिवार के साथ समाज के प्रति अपने दायित्व को भी समझना चाहिए और उनका निर्वहन करना चाहिए। आज की लीला में वनों में विचरते हुए लंकापति रावण को एक सुंदर ऋषि कन्या वेदवती दिखई पड़ती है। वेदवती भगवान विष्णु की तपस्या में ली होती है, क्योंकि वहां मनी मां उन्हें अपना पति मान चुकी होती है। रावण वेदवती के सौंदर्य पर मोहित हो जाता है और वह विभिन्न प्रकार से वेदवती को प्रलोभन देते हुए कहता है कि यदि वह उसका निवेदन स्वीकार करके उसकी पत्नी बन जाए तो उसे वह उसे सोने की नगरी लंका की रानी बनाकर संसार के समस्त सुऽ देगा। ऋषि कन्या वेदवती उन्हें मना कर देती है तथा स्पष्ट कर देती है कि वह भगवान विष्णु को ही अपने पति के रूप में अंगीकार करेंगे। संसार का यश बाबू उसके लिए बिल्कुल बेकार है रावण यह जान जाता है कि यह साक्षात लक्ष्मी का अवतार है इसलिए यदि यह पत्नी के रूप में मिली अथवा इसकी वजह से उसका संहार हो गया तो दोनों ही स्थिति में उसको मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी, इसलिए वह जानबूझकर वेदवती को प्रताड़ित करता है जिससे वेदवती बहुत आहत हो जाती है और रावण को श्राप देकर यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी जान दे देती है।
इधर अयोध्यापति राजा दशरथ के दरबार में श्रवण कुमार नामक युवा आता है और अपने माता-पिता के अंधे होने का कारण पूछता है । महर्षि वशिष्ठ बताते हैं कि उनके माता-पिता पहले संतानहीन थे। उन्होंने अपनी संतान प्राप्ति के लिए अंधा होना स्वयं ही स्वीकार किया है, यह सुनकर श्रवण कुमार तड़प उठते हैं और महर्षि वशिष्ठ से अपने माता-पिता के अंधेपन के निवारण का कोई उपाय पूछते हैं। महर्षि वशिष्ठ उन्हें बताते हैं कि यदि वह काठ की एक कावड़ बनाए और उसमें अपने माता-पिता को ले जाकर समस्त तीर्थों के दर्शन करवा दे तो उनके माता-पिता का अंधत्व दूर हो सकता है। यह सुनकर श्रवण कुमार यह निर्णय लेता है कि वह कांवर बनाकर अपने माता-पिता को उसमें बिठाकर सभी तीर्थ के दर्शन अवश्य कराएगा। वह महर्षि वशिष्ठ व राजा दशरथ से आज्ञा लेकर तीर्थ को रवाना हो जाता है। श्रवण कुमार के जाने के बाद राजा दशरथ के दरबार में प्रजा आकर उन्हें बताती है कि वनों में बहुत से जंगली जानवरों का आतंक है और उनकी वजह से बहुत जान माल की हानि हो रही है। यह सुनकर राजा दशरथ अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ वनों में जा पहुंचते हैं और जंगली जानवरों का शिकार करने लगते हैं। इधर श्रवण कुमार भी कांवर लेकर वनों तक पहुंच जाता है और अपने माता-पिता को प्यास लगने पर सरयू नदी से जल लेने आता है । दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से दशरथ उसकी पदचाप की आहट को जंगली जानवर का आगमन समझ लेते हैं, और शब्दभेदी तीर चला देते हैं। घातक तीर सीने में लगते ही श्रवण कुमार के प्राण उड़ जाते हैं। अंतिम सांसे लेते श्रवण कुमार राजा दशरथ से कहता है कि जाकर मेरे माता-पिता को जल पिला दो ,क्योंकि वह प्यासे हैं । राजा दशरथ जब जल लेकर श्रवण कुमार के वृद्ध माता-पिता के पास जाते हैं और उन्हें सारी घटनाक्रम के बारे में बताते हैं तो वृद्ध माता-पिता राजा दशरथ को यह श्राप देते हैं कि वह भी अपने पुत्र के वियोग में तड़प तड़प कर मरेगा। चार-चार पुत्रें के होने के बावजूद आिऽरी समय में उसके समीप कोई भी पुत्र नहीं होगा। यह श्राप देकर वृद्ध माता-पिता का स्वर्गवास हो जाता है। श्राप को अंगीकार करते हुए राजा दशरथ कहते हैं कि यह शायद ईश्वर की मर्जी है, क्योंकि उनका कोई पुत्र नहीं है अब कम से कम उनके चार पुत्र तो होंगे । इसका कारण यह था कि राजा दशरथ अभी तक निसंतान थे। इसके बाद राजा दशरथ को चार पुत्रें की प्राप्ति होती है। उधर राजा जनक को भी सीता के रूप में एक सुंदर कन्या की प्राप्ति होती है।





