रुद्रपुर: उत्तराखंड के उधमसिंह नगर में सड़कों पर दौड़ते भारी-भरकम डंपर अब सिर्फ खनन सामग्री नहीं, बल्कि लोगों की ज़िंदगियाँ भी ढो रहे हैं। ये वही डंपर हैं जिन्हें देखकर लोग अब ट्रक नहीं, यमराज कहते हैं। पिछले छह महीनों में डेढ़ सौ से ज़्यादा लोग इन यमराजों की चपेट में आकर काल का ग्रास बन चुके हैं।
जनता चिल्लाई, राजनेता धरने पर बैठे, लेकिन न पुलिस ने सुना, न परिवहन अधिकारियों की नींद टूटी। पुलिस कहती है ‘ये जिम्मेदारी परिवहन विभाग की है’, और परिवहन अधिकारी कहते हैं ‘ये काम पुलिस का है’। इस खींचतान में मरता कौन है? आम आदमी।
जनवरी से जून तक कुल 234 भारी वाहन सीज हुए। इनमें भी कितने डंपर थे? जवाब साफ नहीं है। ओवरलोडिंग में चालान हुए सिर्फ 496 के। क्या इन आंकड़ों से लगता है कि रोज़ सड़कों पर दौड़ रहे हज़ारों डंपरों की निगरानी हो रही है? नहीं। जनता कहती है ये सब दिखावा है।
परिवहन विभाग के एक ‘गोपनीय रजिस्टर’ की चर्चा होती है, जिसमें कुछ खास डंपरों के नंबर दर्ज हैं। इन्हें नहीं छेड़ा जाता। जिन्हें संरक्षण नहीं मिला, केवल उन्हीं पर कार्रवाई होती है। यानी सरकारी रजिस्टर नहीं, ‘सिस्टम का रजिस्टर’ असली खेल खेल रहा है।
चैकिंग अभियान की जानकारी डंपर चालकों को पहले ही मिल जाती है। कब, कहां, कितनी देर चैकिंग होगी सब कुछ पहले से लीक। अधिकारी आते हैं, सड़क किनारे खड़े होते हैं, और डंपर चालक आराम से इंतज़ार करते हैं। अधिकारी चले जाते हैं और फिर यमराज की रफ्तार दोबारा सड़कों पर दौड़ने लगती है।
जनपद नैनीताल का हल्द्वानी में तो दिन में नो एन्ट्री के बावजूद डंपर सड़कों पर ऐसे घूमते हैं जैसे पूरा शहर इनका हो। ट्रैफिक पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है। क्या ये सब अज्ञानता में हो रहा है? या फिर कोई अंदरूनी संरक्षण है जो इन डंपरों को खुली छूट देता है? आखिर इन यमराजों को संरक्षण कौन दे रहा है? क्या ये केवल प्रशासनिक लापरवाही है या फिर किसी बड़े आर्थिक नेटवर्क का हिस्सा? जवाब शायद सभी को पता है, लेकिन बोलने की हिम्मत किसी में नहीं।
ये कहानी सिर्फ उधमसिंह नगर या जनपद नैनीताल की नहीं है। ये उस पूरे सिस्टम की कहानी है जहाँ मौत रोज़ सड़कों पर उतरती है, और सरकारी दफ्तरों में सिर्फ चाय के प्याले उठते हैं। जहाँ नेता सिर्फ चुनाव से पहले जनता की चीख सुनते हैं, और अफसर जांच की फाइल में चुप्पी दर्ज कर लेते हैं।
यहां सवाल य़ह उठता है कि कितनी मौतें और होंगी, तब जाकर कार्रवाई होगी? क्या डंपर लॉबी सिस्टम पर इतनी हावी हो चुकी है कि इंसानी जान की कोई कीमत नहीं रही?
एसएसपी के आदेश सिर्फ कागज़ पर क्यों रहते हैं?





