बरेली, जिले में पिछले साल 15 अगस्त को स्वयं सहायता समूहों से बनवाए गए ढाई लाख से ज्यादा तिरंगों का भुगतान नहीं हो पा रहा है। मामला नियमों के पेच में इस कदर फंस गया है कि अफसर भी उलझकर रह गए हैं।
निदेशालय को डीएम, सीडीओ और डीसी एनआरएलएम लगातार पत्राचार कर रहे हैं लेकिन 10 महीने बाद भी बात नहीं बन सकी। नवागत डीएम के सामने भी मामला पहुंचा है। करीब 51 लाख का भुगतान लटका होने से स्वयं सहायता समूह की महिलाएं परेशान हैं।
पिछले साल 15 अगस्त पर राष्ट्रीय आजीविका मिशन (एनआरएलएम) को शासन से नाै लाख 70 हजार तिरंगे झंडे बनवाने का लक्ष्य दिया गया था। स्वयं सहायता समूहों की मदद से दो लाख 55 हजार ही तिरंगे झंडे बन पाए थे। 20 रुपये प्रति झंडे की दर से स्वयं सहायता समूहों को भुगतान करना था। इस हिसाब से करीब 51 लाख रुपये का भुगतान पांच दिन में होने का आश्वासन दिया गया था। इसके लिए महिलाओं ने किसी तरह से पैसे जुटाए थे मगर, पांच दिन का इंतजार 10 माह में भी पूरा नहीं हो सका है।
सीडीओ जग प्रवेश की ओर से सबसे पहले 20 फरवरी को राष्ट्रीय आजीविका मिशन के निदेशक को पत्रा लिखा गया। दोबारा पत्राचार 21 अप्रैल को किया गया। तत्कालीन डीएम रविंद्र कुमार ने 3 मार्च को पत्र लिखा और डीसी एनआरएलएम योगेंद्र लाल भारती ने भी कई बार निदेशालय पत्र लिखा।
लखनऊ में हुई बैठकों के अलावा वीसी में भी भुगतान का मामला उठाया गया, मगर समस्या का समाधान ही नहीं हो पा रहा है। उधर, स्वयं सहायता समूह की महिलाएं भुगतान की मांग लगातार कर रहीं हैं। अधिकारियों के पास जा रही हैं, इससे अफसर भी परेशान हैं।
सीएलएफ के खाते में पड़ा है 97 लाख रुपया
विभागीय जानकारों के अनुसार तिरंगा झंडा बनाने का लक्ष्य जारी करने के साथ ही शासन से 50 फीसदी धनराशि यानी 97 लाख रुपया भेजी थी लेकिन लक्ष्य के अनुसार झंडे नहीं बन सके थे। यह धनराशि सीएलएफ (संकुल स्तरीय संघ) के खाते में पड़ी हुई है। वहीं, झंडे की बिक्री से आई धनराशि भी जमा है, मगर इसके बाद भी भुगतान नहीं हो पा रहा है। सहायता समूहों को भुगतान कैसे किया जाए, यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। जेम पोर्टल से भुगतान करने के लिए कहा जा रहा है पर स्वयं सहायता समूह उस पर नहीं हैं। मुख्य कोषाधिकारी ने फाइल में आपत्ति लगा दी है। निदेशालय से राय लेने के लिए लिखा है– योगेंद्र लाल भारती, डीसी एनआरएलएम





