रुद्रपुर में मछली तालाब की सरकारी भूमि पर 500 करोड़ का घोटाला! भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा से उजागर हुआ बड़ा खेल
रुद्रपुर (ऊधम सिंह नगर) – मुख्यमंत्री के गृह जनपद मुख्यालय रुद्रपुर में स्थित करीब 4.07 एकड़ मछली तालाब की सरकारी भूमि अब बड़े भ्रष्टाचार और भूमि घोटाले की भेंट चढ़ती दिख रही है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार यह भूमि राजस्व ग्राम लमरा, खसरा संख्या 02, किच्छा बाईपास रोड पर रोडवेज़ के समीप स्थित है। यह गड्ढेनुमा, जलमग्न भूमि वैगुल नदी की जद में आती है, जिसे 1988 में नगर पालिका रुद्रपुर ने मछली पालन हेतु नीलाम किया था।
नीलामी से फ्री-होल्ड तक का सफर: नियमों की उड़ाई गई धज्जियाँ
7 दिसंबर 1988 को पाँच बोलीदाताओं ने संयुक्त रूप से ₹3,07,000 की उच्चतम बोली लगाई और ¼ राशि जमा भी कर दी। परंतु शासन ने पत्र संख्या 3435 दिनांक 16-12-93 के माध्यम से स्पष्ट किया कि यह भूमि केवल दो वर्षों की लीज पर ही दी जा सकती है।
बोलीदाताओं ने इसकी सहमति नहीं दी और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
इसके बाद बोलीदाताओं में से एक महेन्द्र छाबड़ा ने 2005 में, नीलामी के 17 वर्ष बाद, अपने चार साझेदारों से शपथपत्र लेकर तत्कालीन सचिव आवास विभाग से मिलीभगत कर, उक्त भूमि को अपने, भाइयों और पिता के नाम पर फ्री-होल्ड करा लिया। बताया जा रहा है कि इसके लिए करोड़ों की रिश्वत दी गई और तीन असंवैधानिक शासनादेश जारी हुए
शासनादेश संख्या 1803/V-आ0-2005-187आ0/01 टीसी-1, दिनांक 04.08.2005
शासनादेश संख्या 2818/V-आ0-2005-10(एनएल)/2005, दिनांक 03.10.2005
शासनादेश संख्या 2301/V-आ0-2005-10(एनएल)/2005, दिनांक 30.10.2006
इन्हीं के आधार पर बर्ष 2000 के सर्किल रेट पर यह भूमि फ्री-होल्ड कर दी गई।
जांच रिपोर्ट ने खोली पोल, फिर भी मामला दबा दिया गया
जिलाधिकारी और अपर जिलाधिकारी (नजूल) की रिपोर्ट (4 अप्रैल 2006, 25 नवम्बर 2006) में साफ कहा गया था कि यह भूमि रुद्रपुर की महायोजना में “जलमग्न खुला क्षेत्र” के रूप में दर्ज है, और ऐसी भूमि को फ्री-होल्ड नहीं किया जा सकता।
इसके बावजूद सचिव स्तर से दबाव बनाकर नियम विरुद्ध प्रक्रिया पूरी कर दी गई।
जांच अधिकारी जय भारत सिंह (एडीएम नजूल) और डीएम जुगल किशोर पंत ने अपनी रिपोर्ट में फ्री-होल्ड विलेख को निरस्त करने की संस्तुति दी थी, परंतु मामला पुनः जांच के नाम पर दबा दिया गया।
2024 में फिर खेल, “मॉल प्रोजेक्ट” को मिली मंजूरी
सूत्रों के अनुसार, मौजूदा सरकार के एक प्रभावशाली नेता, एक बिल्डर “शबाना इंफ्रास्ट्रक्चर”, और कुछ उद्योगपतियों की मिलीभगत से यह भूमि अब 500 करोड़ रुपये के मॉल प्रोजेक्ट में बदलने जा रही है।
बताया जा रहा है कि तीनों पक्षों में एक रजिस्टर्ड एग्रीमेंट भी हुआ है— जिसमें
छाबड़ा परिवार को 36% हिस्सेदारी,
उद्योगपति को 7%,
और बिल्डर को 58% हिस्सा तय किया गया है।
जानकारी के मुताबिक, नेताजी ने अपने हित सुरक्षित करने के लिए 2739 वर्ग मीटर भूमि अपने चहेते उद्योगपति के नाम नि:शुल्क रजिस्ट्री करवा दी है।
सुप्रीम कोर्ट और NGT के आदेशों की अनदेखी
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट (जगपाल सिंह बनाम पंजाब राज्य, 2011) और उत्तराखंड हाईकोर्ट (कुँवर पाल सिंह केस, 2018) ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि तालाब, जोहड़ या सार्वजनिक भूमि का किसी भी प्रकार का नियमितीकरण या निर्माण पूर्णतः अवैध है।
साथ ही राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने जलाशयों के 200 मीटर दायरे में किसी भी निर्माण को प्रतिबंधित किया है।
इसके बावजूद यह भूमि, जो वैगुल नदी की जद में आती है, पर मॉल निर्माण की अनुमति दी गई — जो न केवल पर्यावरणीय बल्कि कानूनी दृष्टि से भी गंभीर अपराध है।
जनहित में मांग — सीबीआई जांच हो
स्थानीय नागरिकों ने शासन और मुख्यमंत्री से मांग की है कि इस पूरे भूमि घोटाले की सीबीआई जांच कराई जाए और इसमें शामिल सभी राजनीतिज्ञों, अधिकारियों और बिल्डरों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जाए, ताकि जनता का विश्वास शासन-प्रशासन में पुनः स्थापित हो सके।





